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ANSHUMAN SINHA

Tuesday, August 11, 2015

Shraddhanjali- A Tribute To Maithili Kokil Vidyapati By Sharda Sinha

Posted by anshuman at 9:28 AM 0 comments
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तेरे दामन में सितारे होंगे तो होंगे ऐ फ़लक, मुझे मेरी माँ की मैली ओढ़नी अची लगी ....!

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तेरे दामन में सितारे होंगे तो होंगे ऐ फ़लक, मुझे मेरी माँ की मैली ओढ़नी अची लगी ....!

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anshuman
i am devoted to music and also my culture..... want to do pure music ..and thats all http://mindswaponline.com/wp-content/uploads/2009/10/nusman.mp3
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मेरी रचनाएँ

आघात.......!
सब कुछ धूमिल हो जाता है ,
विश्वास
जब डगमगाता है ,
माना था ईशवर जिसे हमने ,
वो दूर कहीं खो जाता है ,
सन्नाटों में ,
वीरानो में ,
मन त्राहि -त्राहि चिल्लाता है |

मै पतझड़ था,
तुम सावन थे ,
तुमने हरियाली ले आयी ,
सावन की रिम-झिम बरसाई...!
नम हुई जीवन की मृत्तिका,
आशा के अंकुर फूट गए,
हम बढे चले अपने पथ पर,
नवजीवन जैसे जीवन पर ,
मासूम कली में ढले हुए ,
अध-खिले बने हम खड़े हुए ,
पर यह क्या झंझावात हुआ ?
विश्वासों पर आघात हुआ ...!
न कलि रे , न पूरे खिले ,
अध - खिले गड़े हम टूट गए |
सावन की झाड़ियाँ छूट गयीं ,
जीवन की लड़िये टूट गयीं,
वीरानो में यह जीवन ,
सूनेपन में खंडित मन ,
रो-रो कर पीड़ सुनाता है ,
विश्वास नहीं करना उसपर ...
जो भी "ईशवर " कहलाता है,
जो भी "ईशवर " कहलाता है |
रचनाकार : अंशुमन सिन्हा

गुजरात की एक रात ...!

गुजरात की एक रात ...!

गुजरात में गुज़री ऐसी रात :
लाशों की लगी बरात ,
अर्थ अनर्थ में हुआ परिणत,
लय प्रलय सा हुआ प्रगट |

अवचेतन थे अधखिले फूल
जीवन जिनके हुए निर्मूल ,
नर्म धरातल पर देखो,
शिव शंभू ने
गाड़ा त्रिशूल ;
यह कैसा न्याय प्रतिकूल -यह कैसा न्याय प्रतिकूल |

स्वराष्ट्र की धरती काँप उठी ,
मृत्यु की रूह भी काँप उठी ,
जीवन अस्तित्व खोता रहा
मातम यहाँ होता रहा,
रोने को अश्रु न बाकि थे ,
भगवान् यहाँ सोता रहा ?
क्या भविष्य और क्या अतीत ?
यथार्थ रहा युगों सा बीत ,
जीवन मलवों में दबा पड़ा
रो रही कृष्ण राधा की प्रीत ....!

सब मंदिर- मस्जिद एक हुए
दरिया पहाड़ सा दीखता है ,
नाक रगड़ती गगन चुम्बियाँ ,
अब प्राण नहीं यहाँ टिकता है |

शव-राष्ट्र बना स्वराष्ट्र ..!
रचा फिर एक नया इतिहास ...
रक्त-रंजित इस गाथा का ,
अलग है इतिहास -अलग है इतिहास !
रचनाकार: अंशुमन सिन्हा

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